Posts

महापुरुषों से प्रेरणा लेकर समाजोत्थान की दिशा में आगे बढें।

कोई भी व्यक्ति अथवा समाज अपने अतीत और पूर्वजों से प्रेरणा लेता है और पूर्वजों, महापुरुषों और ऋषि मुनियों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों और उनके द्वारा बताये गए रास्तों पर चल कर ही प्रगति के सोपान तय करता है। लेकिन विश्वकर्मा समाज के लोगों ने इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जिसके कारण हम लोग आजादी के 70 वर्षों के बाद भी अपने आपको अति पिछडा वर्ग में पाते हैं। स्मरण रहे कि आदि शंकराचार्य जो विश्वकर्मा वंशी रहे ने देश के भूभाग के चारों कोनों पर चार पीठों की स्थापना की और समाज को संगठित कर आध्यात्मिक शिखर पर ले जाने का कार्य किया। उनके बाद अनेकों शंकराचार्य भी विश्वकर्मा वंशी रहे। जिन्होंने समाज को दिशा दी। आध्यात्मिक क्षेत्र में देश ही नहीं विदेशों में भी अपना झंडा गाडने वाले गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्री राम शर्मा ने समाज में आयी विकृतियां दूर कर आध्यात्मिक चेतना जाग्रत कर संगठित करने का कार्य किया और धार्मिक अनुष्ठानों में अपना एकाधिकार बनाए रखने वाले पोंगा पण्डितों का वर्चस्व तोड़कर समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को पांण्डित्य कर्म की शिक्षा दी। आज गायत्री परिवार से जुडे हजार

Indian Judiciary and Public

judiciary to Public: You have to be transparent and accountable for what you did. Public to Judiciary: What about you? Judiciary: you can't question the judiciary Public: Is Indian Judiciary above the Constitution? If not then why Judiciary is not ready to change their system? Why you are working less than 150 days in a year when you know that there are more than 2,00,000 cases are pending. You are getting a salary from taxpayers money. You have to be accountable. Judiciary: 🙉

वर्तमान न्याय प्रणाली और उसका भविष्य ?

ब्रिटिश भारत और उससे पहले मुगल शासकों द्वारा किये जा रहे अन्याय और अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिये हम भारतीयों ने बहुत अधिक संघर्ष किये और बहुत से क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का सर्वस्व देश को अन्याय और अत्याचार से मुक्त कराने के लिये अर्पित कर दिया। परंतु क्या आज यह महसूस हो रहा है कि हमारे महान पूर्वजों ने जो लडाइयां हमें एक अन्याय और अत्याचार मुक्त राष्ट्र प्रदान करने के लिये लडीं वह सफल हो सकीं है। क्या आज हम यह कह सकते हैं कि 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत का बहु प्रतिक्षित स्वपन साकार करने के बाद भी हम अन्याय और अत्याचार मुक्त राष्ट्र का स्वपन साकार कर सके हैं। शायद नहीं। हो सकता है बहुत से लोग मेरे विचारों से सहमत न हों परंतु यह कडवी सच्चाई है की हम अन्याय और अत्याचार मुक्त राष्ट्र बनाने में पूरी तरह सफल नहीं हुये है। और हो भी कैसे सकते हैं। हमारी तो यादाश्त ही इतनी कमजोर हो चुकी है कि हम भूल जाते हैं कि एक या दो माह पहले को घटना घटी भी थी। यदि याद भी हो तो हम यह जानने का प्रयास नहीं करते की उसमें क्या हुआ। फिर एक नई घटना घटित होती है। हम बरसाती मेंढक की तरह चार दिन चिल्लाकर ग

स्वतंत्रता के 71 वर्ष और विश्वकर्मा समाज

वर्तमान समय से 71 वर्ष पूर्व जब 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वाधीनता प्राप्त हुई थी। तब भारत की राजनैतिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी। तब से आज 71 वर्षों के अन्तराल में वैश्विक परिवेश में भारत की राजनैतिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति में धरती-आकाश का अंतर आ चुका है। यह परिवर्तन दर्शाता है कि इन 71 वर्षों के अंतराल में भारत में निवास करने वाले लोगों के जीवन स्तर में व्यापक परिवर्तन आया है। लेकिन इतने सब परिवर्तनों के मध्य विश्वकर्मा समाज की राजनैतिक, आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं आ सका है। विश्वकर्मा समाज की इस परिस्थिति के जिम्मेदार जितने सत्ताधारी लोगों द्वारा की गई उपेक्षा रही है। उतनी ही स्वयं समाज के लोगों की मानसिकता भी। समाज को लोगों की मानसिकता रही है कि वह सिंहासन चाहे स्वर्ण का बनाएं या लौह का अथवा लकड़ी का वह बैठने का अधिकार सदैव दूसरे को दे देते हैं। विश्वकर्मा समाज द्वारा निर्मित सिंहासनों से सुसज्जित राजसभाओं में कभी किसी सिंहासन पर बैठने का अधिकार विश्वकर्मा समाज को नहीं मिला। क्योंकि यह अधिकार कभीं हमने चाहा ही नहीं। विश्वकर्मा समा

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

पांच हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीन भारतीय सभ्यता की अनेकों विशेषताओं में  से एक विशेषता है योग। वैदिक कालीन भारत में योग ऋषि-मुनियों की दिनचर्या का हिस्सा हुआ करता था। जिसके माध्यम से वह अपने शरीर को निरोगी रखते थे। उस समय सामान्य मानव की औसत आयु वर्तमान समय की औसत आयु से बहुत अधिक हुआ करती थी। जिसके प्रमुख कारण तत्कालीन पर्यावरण, शुद्ध खान-पान एवं दैनिक योगाभ्यास थे। उस समय से वर्तमान समय तक भारत विभिन्न संक्रमण कालीन परिस्थितियों से गुजरा। मुगल आक्रमणकारियों ने प्राचीन भारतीय सभ्यता, भारतीय साहित्य को कुचल कर रख दिया। उसके पश्चात अंग्रेजी शासन ने भारतीयों में स्वयं की प्राचीन विरासत के प्रति घृणा का भाव भरने में कोई कसर नहीं छोडी। अंग्रेजों ने भारत में स्वयं की सभ्यता का इतना अधिक प्रसार किया की भारतीय लोग आंख बन्द कर अंग्रेजी सभ्यता का अनुसरण करने लगे जो आज तक जारी है।